हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में, हम शब्दों की दीप- शिखा हैं अंधियारे चौबारों में. हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं, डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं, जब तक भोली जनता के अधरों पर डर के ताले हैं. तब तक बनकर पांचजन्य हम हर दिन अलख जगायेंगे, बागी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे,,,,,,,,,,,,Shared with thanks to Mr Vatsal Anand
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