अगर हम हिन्दू हैं तो ये बडे दुख की बात है कि हम पूजा पाठ नहीं करते। केवल बडी बडी बातें करते हैं। अगर एक मुसलमान कहीं भी ट्रेन मे, बस में पाँच वक्त का नमाज पढ कर लोगों को एहसास दिला सकता है कि वो एक मुसलमान है और उसको अपने मुसलमान होने पर गर्व है तो एक हिन्दू दस बार कहीं भी पूजा करके य़े क्यों नही साबित करते है कि वो भी एक धर्मपरायण हिन्दू है? क्या भगवान की पूजा नही करना ही एक हिन्दुओं की पहचान है? अगर हम हिन्दू हैं, तो पूजा करना क्या शर्म की बात है?
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