Wednesday, March 21, 2012

Dhol ,Gawar ,Shudra,Pashu ,Nari The Real Meaning

Please clear your Doubts about the sentence in the Holy Book Ramayana written by the saint Tulsi das-Dhol Ganwar Shoodra Pashu Nari Sakal tadana ke adhikari.As an aged , respected Dr Prabhakar being a scholar of Hindi ,Sanskrit also a Homeopathic Doctor, who resides at Anishabad ,Patna ,Bihar tells that, it is a mistake in printing in Ramayana.Instead of ताड़न it should be तारन.Then the meaning of तारन is मिलन /प्रेम.You have to meet- ढोल, गंवार, शूद्र, अरु नारी with love then only they shall obey you.Can you expect from a fool, illiterate,animal,woman to love you and obey you,unless you meet them/love them?So the saint Tulsidas was right but the interpretation due to mistake in typing, is wrong.I beg your pardon if I am wrong. 

13 comments:

  1. Dhol -Gawar-shudra-pashu-nari...........sab hai taran ke adhikari

    KA SIDHA SA MATLAB HOTA HAI ...DHOL KO PITNA CHAHIYE, GAWAR KO PITNA CHAHIYE, SHUDRA (SC/ST/OBC) KO PITNA CHAHIYE, PASHU PITNE KE SAMAN HAI, NAARI PITNE KE SAMAN HAI................LOG USHME TARAH2 SE LAP LAGA RAHE HAI................DARAH SAL TULSIDAS AUR MANU DONO EVEN CHANKYA NE BHI NAARI AUR SHUDRA AAJ KE SC/ST/OBC KO NICH HI SAMJHA HAI

    1JAISE GITA ME LIKHA HAI................SHUDRA AUR NARI PAAP YONI HAI
    2 TULSHI KRIT AYODHYA KHAND 155- VIDHUHI NA NAARI HRIDAY GATI JANI. SAKAL KAPAT AGH AVGUN KHANI.3 ARANYAKAN SE ---ADHAM TE-ADHAM-ADHAM-ADHAM TE NAARI. TINH MANH MAI MATI MAND ADHARI.

    MANU SAHAB TO AUR AAGE NIKAL GAYE UNKI TO BAAT HI NIRALI THI JISKE VAJAH SE AAJ BHI SC/ST/OBC KE LOG BRAHMANWAD KE GULAM HAI.

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    1. वस्तुतः यह शब्द "ताड़ना" है "प्रताड़ना" नहीं। रामचरितमानस खड़ी बोली में लिखी गयी है।
      पूर्ण दोहा इस प्रकार है-

      प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
      ढोर गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
      भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब ताड़ना के अधिकारी हैं॥3॥

      सन्दर्भ देखने से स्पष्ट है की यहाँ बात शिक्षा/देखरेख की हो रही है, न कि प्रताड़ना की।

      तथाकथित बुद्धिजीवी इसे जाति पर अत्याचार बता रहे है, जिसके बारे में यह दोहा रामचरितमानस से, स्थिति स्पष्ट करता है-

      हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।

      यह जानकार की श्रीराम के ह्रदय में हरिजन के लिए कितना गाढ़ा स्नेह/प्रीती है, हनुमानजी के नयन जल से भर गए तथा मन और भी पुलकित हो गया।

      अतः स्पष्ट है की रामचरितमानस जातिवाद का तो समर्थन नहीं करती।

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    2. वस्तुतः यह शब्द "ताड़ना" है "प्रताड़ना" नहीं। रामचरितमानस खड़ी बोली में लिखी गयी है।
      पूर्ण दोहा इस प्रकार है-

      प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
      ढोर गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
      भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब ताड़ना के अधिकारी हैं॥3॥

      सन्दर्भ देखने से स्पष्ट है की यहाँ बात शिक्षा/देखरेख की हो रही है, न कि प्रताड़ना की।

      तथाकथित बुद्धिजीवी इसे जाति पर अत्याचार बता रहे है, जिसके बारे में यह दोहा रामचरितमानस से, स्थिति स्पष्ट करता है-

      हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।

      यह जानकार की श्रीराम के ह्रदय में हरिजन के लिए कितना गाढ़ा स्नेह/प्रीती है, हनुमानजी के नयन जल से भर गए तथा मन और भी पुलकित हो गया।

      अतः स्पष्ट है की रामचरितमानस जातिवाद का तो समर्थन नहीं करती।

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  2. i think u r wrong in my knowledge tulsidas explained the situation of era of great akbar

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  5. A Drum, an Illiterate, Poor people , Animals and Women all have the rights to be uplifted.

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  6. वस्तुतः यह शब्द "ताड़ना" है "प्रताड़ना" नहीं। रामचरितमानस खड़ी बोली में लिखी गयी है।
    पूर्ण दोहा इस प्रकार है-

    प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
    ढोर गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
    भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब ताड़ना के अधिकारी हैं॥3॥

    सन्दर्भ देखने से स्पष्ट है की यहाँ बात शिक्षा/देखरेख की हो रही है, न कि प्रताड़ना की।

    तथाकथित बुद्धिजीवी इसे जाति पर अत्याचार बता रहे है, जिसके बारे में यह दोहा रामचरितमानस से, स्थिति स्पष्ट करता है-

    हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।

    यह जानकार की श्रीराम के ह्रदय में हरिजन के लिए कितना गाढ़ा स्नेह/प्रीती है, हनुमानजी के नयन जल से भर गए तथा मन और भी पुलकित हो गया।

    अतः स्पष्ट है की रामचरितमानस जातिवाद का तो समर्थन नहीं करती।

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  7. वस्तुतः यह शब्द "ताड़ना" है "प्रताड़ना" नहीं। रामचरितमानस खड़ी बोली में लिखी गयी है।
    पूर्ण दोहा इस प्रकार है-

    प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
    ढोर गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
    भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब ताड़ना के अधिकारी हैं॥3॥

    सन्दर्भ देखने से स्पष्ट है की यहाँ बात शिक्षा/देखरेख की हो रही है, न कि प्रताड़ना की।

    तथाकथित बुद्धिजीवी इसे जाति पर अत्याचार बता रहे है, जिसके बारे में यह दोहा रामचरितमानस से, स्थिति स्पष्ट करता है-

    हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।

    यह जानकार की श्रीराम के ह्रदय में हरिजन के लिए कितना गाढ़ा स्नेह/प्रीती है, हनुमानजी के नयन जल से भर गए तथा मन और भी पुलकित हो गया।

    अतः स्पष्ट है की रामचरितमानस जातिवाद का तो समर्थन नहीं करती।

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  8. I agree with Mr. Deepak. Nice explanation :)

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  9. प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
    ढोर गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥
    भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब ताड़ना के अधिकारी हैं॥3॥

    सन्दर्भ देखने से स्पष्ट है की यहाँ बात शिक्षा/देखरेख की हो रही है, न कि प्रताड़ना की।

    तथाकथित बुद्धिजीवी इसे जाति पर अत्याचार बता रहे है, जिसके बारे में यह दोहा रामचरितमानस से, स्थिति स्पष्ट करता है-

    हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।।

    यह जानकार की श्रीराम के ह्रदय में हरिजन के लिए कितना गाढ़ा स्नेह/प्रीती है, हनुमानजी के नयन जल से भर गए तथा मन और भी पुलकित हो गया।

    अतः स्पष्ट है की रामचरितमानस जातिवाद का तो समर्थन नहीं करती।

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  10. मे री समझ से यह बिल्कुल उचित ब्याख्या है।

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